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करें विश्वास कैसे सब तेरे वादे चुनावी हैं / डी. एम. मिश्र

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करें विश्वास कैसे सब तेरे वादे चुनावी हैं
हक़ीक़त है यही सारे प्रलोभन इश्तहारी हैं।

हवा के साथ उड़ने का ज़रा -सा मिल गया मौक़ा
तो तिनके ये समझ बैठे वही तूफ़ान आँधी हैं।

कहाँ है वो हसीं दुनिया ग़ज़ल जिस पर बनाते हो
बहुत अच्छा कहा बेशक , मगर अश्आर बासी हैं।

सियासत की वो मंडी है वहाँ भूले से मत जाना
वही चेहरे वहाँ चलते हैं जो कुख्यात दाग़ी हैं।

न तुम कहने से बाज़ आते न हम सुनने से ऐ भाई
पता दोनों को है लेकिन सभी बातें किताबी हैं।

जवाँ बच्चे बडे़ खुश हैं मिला लैपटाप है जबसे
किताबें छोड़कर पढ़ने लगे सब पोर्नग्राफ़ी हैं।

हमें तो रोज़ अपना पन दिखाकर लूटता है वो
मगर हम क्या करें हम भी तो लुट जाने के आदी हैं।