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गाँव में अपने गली है गैल है / डी. एम. मिश्र

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गाँव में अपने गली है गैल है
है कहीं छप्पर , कहीं खपरैल है।

गाय को हम मानते माँ की तरह
भाइयों की भाँति स्नेही बैल है।

देह में बालू लगी , माटी लगी
पर , कहीं मन में न कोई मैल है।

रेह से छाँटी पिछौरी साफ है
देखने में ये भले मटमैल है।

है बड़ी तंगी सही है ये मगर
दूसरों के वास्ते दिल फैल है।