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दिल को बहलाओ मगर पागल बहलता ही नही / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
दिल को बहलाओ मगर पागल बहलता ही नहीें
लाख समझाओ इसे लेकिन समझता ही नहीं।
हर मुसीबत की वजह बस इक यही दिल ही तो है
है मेरे सीने में पर मुझसे सँभलता ही नहीं।
हम तो कब से मिल रहे अपने तरीके़ से मगर
ज्योतिषी कहता है , गुण दोनों का मिलता ही नहीं ।
उम्र का है फ़ासला बेशक हमारे बीच में
इश्क पर लेकिन किसी का जोर चलता ही नहीं
हम भटकते हैं तो बस उसकी दुआ के वास्ते
दिल फ़कीरों का कहीं इक दर पे रमता ही नहीं ।
आप तस्वीरें बनायें शैाक़ से उसकी मगर
वो खु़दा है ,और वो कागज़ पे बनता ही नहीं ।