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प्यार समर्पण हार गया, हठ जीत गया / डी. एम. मिश्र

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प्यार समर्पण हार गया , हठ जीत गया
एक यही दुख गाते जीवन बीत गया।

प्यास लिए सागर तट से मैं लौटा हूँ
जो जीवन -घट में था वह भी रीत गया।

दुश्मन ने जो पीड़ा सारी उम्र न दी
उससे ज़्यादा पल में ही दे मीत गया।

जाने क्या -क्या खेल हमारे साथ हुआ
हार गयीं खुशियाँ सारी ग़म जीत गया।

इंतज़ार में जिसके सारी उम्र कटी
मधुर कल्पनाओं का मौसम बीत गया।