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किसी क़ि़ताब में जन्नत का पता देखा है / डी. एम. मिश्र

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किसी क़ि़ताब में जन्नत का पता देखा है
किसी इन्सान की सूरत में खुदा देखा है।

इसी से सब उसे परवरदिगार कहते हैं
हर मुसीबत में उसे साथ खड़ा देखा है।

लोग तो चाँद पे,मंगल पे भी हो आये हैं
इस तरह का कहीं संसार बसा देखा है।

लोग हिन्दू को,मुसलमान को अलग करते
घर तो दोनों का मगर मैंने सटा देखा है ।

मेरे माँ-बाप का मुक़ाम मुझ से मत पूछो
उनके चरणों में ही सर्वस्व सदा देखा है।

भले फ़कीर है लेकिन मुझे पसन्द है वो
उसकी आँखों में माँगने का मज़़ा देखा है।