भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़ज़ल बड़ी कहो मगर सरल ज़बान रहे / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ग़ज़ल बड़ी कहो मगर सरल ज़बान रहे
उठाओ सर तो हथेली पे आसमान रहे।

हज़ार मुश्किलें भी ज़िंदगी में आयेंगी
दुआ करो कि ख़ुदा हम पे मेहरबान रहे।

ख़त्म हो जाय भले मान , पद , प्रतिष्ठा सब
मैं रहूँ या न रहूँ पर मेरा ईमान रहे।

ख़ु़दा से माँगना हो कुछ तो यही मागूँगा
क़ब्र में जा के भी ज़िंदा मेरा इन्सान रहे।