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इक घड़ी भी जियो इक सदी की तरह / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
इक घड़ी भी जियो इक सदी की तरह
जिदगी को जियो जिंदगी की तरह।
रास्ते खु़दबखु़द ही निकल आयेंगे
जब बहो तो बहो इक नदी की तरह।
क्यों परेशान होते हो कल के लिए
जब खिलो तो खिलो इक कली की तरह।
दूसरों के लिए भी उजाला बनो
जब जलो तो जलो रोशनी की तरह।
नींद मे भी हैं पलकें बिछाये हुए
उड़के आ जाओ तुम इक परी की तरह।
ये न सोचा था इतने क़रीब आओगे
हम मिले थे कभी अजनबी की तरह।