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इतने क़रीब रह के मगर भूल गये हैं / डी. एम. मिश्र

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इतने क़रीब रह के मगर भूल गये हैं
वो आम नही, ख़ास हैं पर भूल गये हैं।

जब बात भी करने की नहीं आप को फ़ुरसत
फिर क्या गिला है आप अगर भूल गये हैं।

इतनी जनाब आपने कर ली है तरक़्क़ी
अपना वो वतन और वो घर भूल गये हैं।

परदेस में भी आ के आप कामयाब हैं
माँ-बाप की दुआ का असर भूल गये हैं।

कैसे कहूँ कि आप वफ़ादार नहीं हैं
जब से उधर गये हैं, इधर भूल गये हैं।

मय का हिमायती हूँ इसी बात पर मगर
पीने लगे तो लोग ज़़हर भूल गये हैं।

कितने भरे हुए हैं वो झूठे गुमान से
बाँहों का बल है याद जिगर भूल गये हैं।