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प्रतिरोध में खड़ा होता है कृष्ण / लक्ष्मीकान्त मुकुल
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अन्याय की विष वेलियाँ पसरी हैं
नंदगांव, वृंदावन, गोकुल में नहीं, पूरी दुनिया में
कंशों ने हड़प लिए हैं आम आदमी की निजता को
उसके अधिकार, न्याय के लिए उसकी तड़प
जल-जंगल-जमीन सभी बंधक बनाए जा रहे हैं मथुरा के धन सेठों की तिजोरियों में
पूतनाएँ छीन रही हैं बच्चों की पोषणता
तृणावर्त ओं ने फैला रहा हैं क्रूरता कि अंधड़
वत्सासुरों ने गाँव-गांव, शहर-शहर में लगा दिया है धर्म-जाति के भेद की लपटें
बकासुरों के नए अवतारों ने अपनी चोंचों में दबोच लिए हैं लोगों की खुशहाली
आधासुरों के अजगर मुखों में अनायास ही बढ़ते जा रहे हैं लोग बाग
वैश्विक पूंजी के बाज़ार के दलदल में
जब भी गहराती है इस समय की बर्बरता
प्रतिरोध में सजग खड़ा होता है कोई कृष्ण!