प्रथम अर्चिका अंशुमान की / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
प्रथम अर्चिका अंशुमान की तन मन ऊर्जस्वित कर जाती।
सोई कलियाँ खिल जाती हैं,
जग जाते सब तरुवर, पल्लव।
वेद ऋचाएँ गाते खगकुल,
भा जाता मन को मृदु कलरव।
सोये जन पर दृष्टि रश्मि की पड़ पामर को द्वित कर जाती।
प्रथम अर्चिका अंशुमान की तन मन ऊर्जस्वित कर जाती।
काया की कारा मिट जाती,
मिट जाता छल अवगुठंन भी।
द्वेष वृक्ष के मूल तक्र गिर,
महके अच्युत शुचि तन, मन भी।
उभयनिष्ठ हो पुण्य उषा हर जड़ जीवन पुलकित कर जाती।
प्रथम अर्चिका अंशुमान की तन मन ऊर्जस्वित कर जाती।
प्राण, रक्त विहँसे रग-रग में,
हृदय जान लेता अभ्यन्तर।
श्वास पिंडिका में जा करती,
विष को अमृत में रूपान्तर।
कमल सहस्त्रों खिल जीवन को सौरभ से सिञ्चित कर जाती।
प्रथम अर्चिका अंशुमान की तन मन ऊर्जस्वित कर जाती।