चीं चीं ट्वीं-ट्वीं ध्वनि अविरल बह,
करें कर्णपटल गुंजार।
कोयल पिक अलि वृंद हरषकर,
करें साम स्वर में उच्चार।
नन्हा रवि रक्तिम अाभामय,
हुआ उदित प्राची दिशि वासर।
पद्म खिले, हरषे पुष्कर नित,
अवनि उठी प्रात: अलसाकर।
पीपल पात, कनक बाली अरु,
द्रुमदल डोल करे मनुहार।
नन्हा बालक विनत हुआ ज्यों,
नैन मूँद ईश्वर के द्वार।
प्रथम अर्चिका मंद-मंद गति,
चली दिवाकर के प्रासाद से।
वात अवनि सर्वत्र टहलकर,
बिखराती सुरभोग अबाध से।