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प्रिज्म-जीवन / रमेश रंजक

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बोल मेरे
पाँव के भूगोल
कौन तेरा पंथ,
तेरा रंग—
मेरे प्रिज़्म-जीवन बोल ?


रोज़ मेरी देह से
छन कर गुज़रते दिन
किस तरह ?
यह बात कह पाना
नहीं मुमकिन

एक भीगे हुए साबुन-सा
खिसक जाता है समय
दे मुट्ठियों का झोल

बोल मेरे पाँव के भूगोल
कौन तेरा पंथ
तेरा रंग—
मेरे प्रिज़्म-जीवन बोल ?