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फ़रियाद है अब लब पर जब अश्क-फ़िशानी थी / बेहज़ाद लखनवी

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फ़रियाद है अब लब पर जब अश्क-फ़िशानी थी
ये और कहानी है वो और कहानी थी

अब दिल में रहा क्या है जुज़ हसरत-ओ-नाकामी
वो नीश कहाँ बाक़ी ख़ुद जिस की निशानी थी

जब दर्द सा था दिल में अब दर्द ही ख़ुद दिल है
हाँ, अब जो हक़ीक़त है पहले ये कहानी थी

पुर-आब सी रहती थीं पहले ये मिरी आँखें
हाँ-हाँ इसी दरिया में अश्कों की रवानी थी

ऐ चश्म, हक़ीक़त में दुनिया को ये समझा दे
बाक़ी भी वही निकली जो चीज़ कि फ़ानी थी

बुलबुल ने तो अफ़्साना अपना ही सुनाया था
गुलशन की कहानी तो फूलों की ज़बानी थी

यूँ अश्क बहाए थे यूँ कीं न थीं फ़रियादें
इक बात छुपानी थी इक बात बतानी थी

सादा नज़र आता है अब तो वरक़-ए-दामन
अब तक मिरे दामन पर आँखों की निशानी थी

'बहज़ाद' का वो आलम भी ख़ूब ही आलम था
'बहज़ाद' की नज़रों में हर चीज़ जवानी थी