भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बचा रह गया नमक / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
सनसनाते शब्दों से उछलकर
छलक पड़े आंसू
ये अच्छा ही हुआ ना!
अन्दर अगर रह जाते
तो रेतते रहते
कलेजा देर तक।
अब देखो तो किस तरह
बातों-बातों में हवा
उड़ा ले गई इनको
बचा रह गया नमक
यह अपने हिस्से का।