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बच्चों के सपनों से डर / शरद कोकास
Kavita Kosh से
बच्चों में देखते हैं हम खुद को बड़े होते हुए
कोशिश करते हैं
अपना बचपन दोबारा जीने की
बच्चों को बचाना चाहते हैं हम
उन क्रूर सम्भावनाओं से
जिनसे नहीं बचा पाए थे हमें
हमारे पिता
जिन रास्तों पर ठोकरें मिली थी हमें
उन रास्तों को ठीक ठीक पहचान सकते हैं हम
अपने बच्चों के बचपन में
अपने बचपन के खाते में दर्ज दुखों को
भुनाने की कोशिश करते हैं
बच्चों के सपने पूरे करते हुए
साथ ही छीन लेना चाहते हैं हम
उनसे मनचाहा स्वप्न देखने की स्वतंत्रता
वस्तुतः हमें उनके सपनों से डर लगता है।
-1997