भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बजते नूपुर रुनझुन-रुनझुन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
Kavita Kosh से
|
नूपुर बेजे जाय रिनिरिनि।
आमार मन कय, चिनि चिनि।
बजते नूपुर रुनझुन रुनझुन
कहता मेरा मन उनको सुन
'पहचानूँ उसको पहचानूँ'।
बहती मधुऋतु की वायु ।
लेती कुँजों को छाय ।
वे कलश और वे कंगन ।
उसके चरणों से धरणी
रह-रह उठती सिहराय ।।
पूछे पारुल, वो कौन ?
किस वन के तुम माया-मृग ।
अर्पित होते हैं फूल,
सहलाता केश पवन ।
हर्षित हैं तारागण ।
झिल्ली स्वर उठते झिन झिन।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत वितान' में 'प्रेम' के अन्तर्गत 105 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)