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बड़ी मुश्किल से दिन अपने ग़रीबी में गुजारे हैं / रंजना वर्मा

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बड़ी मुश्किल से दिन अपने गरीबी में गुजारे हैं
न ही सूरज कोई अपना न अपने चाँद तारे हैं

नहीं अब आस की किरणें बिखरतीं मेरे आँगन में
न वो उम्मीद है बाक़ी जिये जिसके सहारे हैं

ज़माना सिर्फ़ है उन का ख़ज़ाने हैं भरे जिनके
उन्हीं के वास्ते दुनियाँ में सब दिलकश नज़ारे हैं

गिरे सब फूल मुरझा कर,तितलियाँ हो रहीं बेसुध
न जाने दूर कितनी हो गयीं हमसे बहारें हैं

चले आओ कि अब तुम बिन कहीं भी जी नहीं लगता
इधर देखो तुम्हारी हम भी तो उल्फ़त के मारे हैं

बहुत है रूह प्यासी तिश्निगी पैठी गले मे भी
नहीं ज़रिया है कोई हम समन्दर के किनारे हैं

जमीं प्यारी हमारी है बिछौना औ फ़लक़ चादर
इन्होंने ही हमारी जिंदगी के पल सँवारे है