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बदल-ए-लज़्ज़ते-आज़ार कहाँ से लाऊँ / हसरत मोहानी
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बदल-ए-लज़्ज़ते-आज़ार कहाँ से लाऊँ
अब तुझे ऐ सितमे-यार कहाँ से लाऊँ
है वहाँ शाने-तगाफ़ुल<ref>उपेक्षा की शान</ref> को जफ़ा<ref>ज़ुल्म</ref> से भी गुरेज़<ref>परहेज़</ref>
इल्तफ़ाते-निगहे-यार<ref>प्रिय की कृपा दृष्टि</ref> कहाँ से लाऊँ
शेर मेरे भी हैं पुरदर्द वलेकिन ’हसरत’
’मीर’ का शेवाए-गुफ़्तार<ref>बात कहने का ढंग</ref> कहाँ से लाऊँ
शब्दार्थ
<references/>