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बहुत कुछ होगा इस बरस / शरद कोकास
Kavita Kosh से
इस बरस जब खिलेंगे टेसू
नहीं खिल सकेंगे उनके मन
जिनके बच्चे
टेसू का रंग बनाने से पहले
अपने ही ख़ून के रंग मंे रंगे गए
इस बरस जब फूलेगी सरसों
खेतों में खड़ी रहेगी सकुचाई
बस्तियों में फलती-फूलती
वैमनस्यता देखकर
इस बरस जब बहेगी बयार
लिए होगी ढहे हुए विश्वासों की धूल
कुरेदेगी ज़ख्म उनके
जिन्हें अब तक पता नहीं
कि उनका दोष क्या है
इस बरस जब थिरकेंगे पाँव
चुभेंगी चूड़ियाँ टूटी हुईं और चुभेंगे टुकड़े
अपने ही घर के टूटे हुए सामानों के
इस बरस बहुत कुछ होगा
जो नहीं हुआ पिछले बरसों में।
-1993