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बह रही है गोमती चुपचाप / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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बह रही
है गोमती चुपचाप
 
साँझ-बीते नये पुल पर
शोर-करते वाहनों की भीड़ है
ठीक नीचे थरथराता
अबाबीलों का पुराना नीड़ है
 
ढहे खंभे हैं
पुराने सेतु के
जो जल रहे हैं नाप
 
घाट पर बैठा दिखा
एक लड़का मौन-ओढ़े
उम्र भर के बाद लौटा
लिये आँखों में
युगों के दर्द पोढ़े
 
सोचता था
बैठकर वह
फिर सुनेगा नदी का आलाप
 
घाट उजड़े - नदी सकुची
शहर बढ़ता ही गया है
'रेल-ब्रिज' के पार दिखते
गुंबदों के बीच
यह होटल नया है
 
यहीं पर तो
एक बच्चे ने
सुना था ढाई आखर जाप