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बारहा जुल्मो सितम सहता रहा / मृदुला झा
Kavita Kosh से
अपनी नादानी पे ही हँसता रहा।
बात क्या मुझसे कुछ मत पूछिये,
हाँ बगावत खुद से मैं करता रहा।
जुस्तजू यूँ तो सदा दिल में रही,
फासला क्यों दिन-ब-दिन बढ़ता रहा।
ना समझ वह मुझको ही छलती रही,
जान कर अनजान बन डरता रहा।
हो मयस्सर उनको दुनिया की खुशी,
सोचकर मैं घर सदा भरता रहा।
बेरुखी उनकी मुझे डसती रही,
बेखबर रह प्यार में बहता रहा।
ज़िन्दगी के आखिरी पल में ‘मृदुल’,
वह हमारे प्यार में मरता रहा।