भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बारिश : एक / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
जी भर नहायी है
यह पहाड़ी
इस बार बारिश में
हरी हो गई तबियत
गोद भी।
यूं ही नहीं निखार
आता अंग-अंग में
उभरी पुष्ट शिलओं पर
सलोनी कालिमा।