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बाशऊर आप हैं / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
बाशऊर आप हैं
बेशऊर हम !
राजनीति लखटकिया
कुर्सिया जनून
अपने ही नाख़ूनों
अपना ही ख़ून,
प्यालों में
पी गई शरम !
तुँदियाई भूख
और खाजा ईमान
आहों की गठरी से
वाहों का दान,
व्यापारी
हो गया धरम !
प्रामाणिक रँगरलियाँ
सभ्यता बुलन्द
बल्बों को बाल
नयन कजरारे बन्द,
नगनाए
रूप के भरम !
बदहवास दुपहरियाँ
छाया की खोज
अपना हल पास नहीं
और प्रश्न रोज़,
खोपड़ियाँ
तर्क से गरम !
05 अगस्त 1973