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ब्लैकमेलर-8 / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
वह
रात था। अंधेरा था। सलाखें था। पैरों
की गूँजती आवाज़ था। जब मैं
जेल में था। वह
मेरे साथ था। चारों ओर था। बल्लु
और मेरे बीच था।
--'कहिए, क्या हालचाल है> आजकल
कविताएँ क्यों नहीं लिखते?
और जब लिखने को होता तो कहता-- 'यहाँ भी!
बल्लु से बात क्यों नहीं करते? वह
मामूली चोर-क़ैदी है-- इसलिए।'
एक दिन तो हद्द हो गई। बल्लु बोला
--'तुमने ऎसा क्या किया-- क्या लुखा पंतलु-- जो
यहाँ आया?' मैं घबरा गया।
मैंने देखा। मैंने पाया कि वह बल्लु का
चेहरा बन चुका है।