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भारत हमारा प्यारा / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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है स्वर्ग से भी अच्छा
भारत हमारा प्यारा;
हम हैं सितारे इसके
यह है गगन हमारा।

इसका मुकुट हिमालय
पर्वत है सबसे ऊँचा;
है मखमली बगीचा।
हैं सींचती हजारों
नदियों की इसको धारा।1।

खारे समुद्र भी यह
बाहों में भरता आया;
अपनी मिठास का जल
उनमें मिलाता आया।
रोके हैं इसने तूफाँ
बन कर सुदृढ़ किनारा।2।

इसका रहा है चिंतन
आश्रम-तपोवनों में,
पनपा है सारा दर्शन
कुदरत के अंचलों में।
सादा रहा है जीवन
ऊँची विचार-धारा।3।

है धर्म या कि मजहब
इसके लिए वही जो
इंसान को बनाए
इंसान बस सही जो।
इंसान में ही इसने
भगवान को निहारा।4।

इसका यह सोचना है-
धरती-गगन सभी के;
हैं आग और पानी
ऊर्जा, पवन सभी के।
सबके लिए खुला है
कुदरत का कोष सारा।5।

इसने सफर में जाने
कितने पड़ाव देखे;
कितने उतार देखे
कितने चढ़ाव देखे।
बदला है खुद औ’ बदली
इसने समय की धारा।6।

सब स्वस्थ हों, सुखी हों
इसकी यह कामना है;
कल्याण हो सभी का
इसकी यह भावना है।
‘दुनिया कुटुम्ब सारी’
इसका रहा है नारा।7।

5.5.89