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मख़्मूर अपने दिल में, तकब्बुर न लाइए / 'अख्तर' शीरानी
Kavita Kosh से
मख़्मूर<ref>नशे में चूर, उन्मत्त</ref> अपने दिल में, तकब्बुर<ref>अभिमान</ref> न लाइए,
दुनिया में हर उरूज<ref>बुलन्दी</ref> का एक दिन ज़वाल<ref>पतन</ref> है ।
मचलता होगा इन्हीं गालों पर शबाब कभी,
उबलती होगी इन्हीं आँखो से शराब कभी ।
मगर अब इनमें वह पहली-सी कोई बात नहीं
जहाँ में आह किसी चीज की सबात<ref>स्थायित्व</ref> नहीं ।
शब्दार्थ
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