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मज़ाक़ नहीं होने दूँगा मैं / शलभ श्रीराम सिंह
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सम्भावना के साथ मज़ाक़ नहीं होने दूँगा मैं
नहीं होने दूँगा मज़ाक़ उस इच्छा के साथ
ईख की नन्ही पत्ती की तरह सर उठा रही है जो,
जिसमें जीवित है मेरे आख़िरी दिनों का सपना ।
सब कुछ
सब कुछ भले लग जाए दाँव पर
यहाँ तक कि जीवन भी
सम्भावना को उपलब्धि तक पहुँचने में मदद करूँगा
मदद करूँगा इच्छा के आकार लेने तक
आकांक्षा के पूरी होने तक मदद करता रहूँगा मैं ।
उसी में...
अन्तत: उसी में जीना है मुझको
जिसकी सम्भावना के साथ होने वाला है मज़ाक़
मज़ाक़ होने वाला है जिसकी इच्छा के साथ
आकाँक्षा के साथ मज़ाक़ होने वाला है जिसकी
सम्भावना के साथ मज़ाक़ नहीं होने दूँगा..