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मत भीख माँग, मत भीख माँग / रामगोपाल 'रुद्र'

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मत भीख माँग, मत भीख माँग, मत माँग भीख

तू ब्रह्मतेज, वाणी का सुत;
तुझमें तेरी प्रतिभा अद्‍भुत;
तू भाव-कला-निधि से संयुत;
मत भूल कि तू भू पर क्या है, ऊपर दिव को क्या रहा दीख।

तू राग-कल्पना से समृद्ध
तू त्याग-भावना-युक्त सिद्ध,
सारल्य-बाल, अनुभूति-वृद्ध,
ओ रे वसंत के अग्रदूत! पिक होके क्यों यों रहा चीख?

कहता उलटी लिपि का विधान,
कीचड़ में गड़कर रत्‍न छान!
तो यह भी तू कर दे प्रमाण;
उलटी गंगा बह जाय यहाँ, बह जायँ कूल, वह योग सीख।