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मनुष्य / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
आग सब जला देती है
पर यह कैसी आग
जो जल रही है निरन्तर
बढ़ रही है लगातार
झुलसा बहुत कुछ
पर भस्म नहीं हुआ सब कुछ
बचा है मनुष्य में मनुष्य अब भी
००० ००००
क्या मनुष्य भी एक दिन
फायरप्रूफ हो जाता है
लोहे की मशीन की तरह
या कि बचा रहता है जरा सा मनुष्य
मनुष्य में
मनुष्य की तरह
हर तरह के मशीनीकरण के बाद भी