मनु का भारत मैं लागू विधान ना चाहिए / सतबीर पाई
मनु का भारत मैं लागू विधान ना चाहिए
इस भारत को कहो भारत हिन्दुस्तान ना चाहिए...
वर्ण बनाए चार मनु नै शूद्रों का नाश किया
ब्राह्मण वैश्य क्षत्री एक और शूद्र को दास किया
नफरत दी लपेट म्हारा गरीबी मैं वास किया
न्यारे न्यारे करण खातर चार नीति त्यार करी
साम दाम दण्ड भेद नीति शूद्र पै लागू चार करी
जाति और उपजाति साथी इसनै कई हजार करी
जो नैतिकता को खतम करै इसा ज्ञान ना चाहिए
जो करता इसी चालाकी इसा इनसान ना चाहिए
समझ्या गया गैर बैर तुझसे लगाया गया
शिक्षा सारी छिन्नी होता शूद्र का सफाया गया
अनपढ़ किया समाज तेरे इतिहास को दबाया गया
इतिहास के दबाया पीच्छै पिच्छै रहग्या दलित समाज
सीधे सादे तुम लोगों को इस तरह से किया मोहताज
झूठी कहाणी सुणा सुणा कै कायम कर लिया अपनणा राज
फेर ऐसे लोग यहां के हुक्मरान ना चाहिए
ठग डाकू चोर लुटेरे या बेइमान ना चाहिए...
तैंतीस करोड़ देवता की या करते बात निराली रै
कहीं पै मंदिर शिव का देख्या कहीं पै माता काली रै
कहीं पै ब्रह्मा कहीे पै विष्णु कहीं पै शेरां वाली रै
तीन वर्ण के इन लोगों ने शूद्र कोा चक्कर मैं डाला
मर्यादा पुरुषोत्तम राम कभी पुजाया कृष्ण काला
मिट्टी के बुत पूज पूज कै ना कुछ हासिल होणे वाला
जो रंग रोगन से सजे इसे भगवान ना चाहिए
यज्ञ हवन तप व्रत तीर्थ असनान ना चाहिए...
सबसे ऊंचा वर्ण ब्राह्मण इसकी ठेकेदारी देखी
क्षत्री तो सरदार बणाया वैश्य की व्यापारी देखी
पढ़ने लिखणे कोन्या पावै या थारी अलाचारी देखी
इसी मचाई लूट फूट तै राज तुम्हारा छीन लिया
तेरी समझ मैं कुछ ना आया भाईचारा छीन लिया
पाई वाले सतबीर तेरा तो साधन सारा छीन लिया
जो झूठ बोलज्या इसे नेता आए प्लान ना चाहिए
इन झूठी बातां ऊपर धरणा ध्यान ना चाहिए...