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मन के मंदिर में लिखना सखि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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भालो बेसे सखी, निभृत नयने
आमार नामटि लिखो — तोमार
मनेर मंदिरे
मन के मंदिर में लिखना सखी
नाम लिखना मेरा प्रेम से ।
मेरे प्राणों के ही गीत से,
सुर वो नूपुर का लेना मिला ।।
मेरा पाखी मुखर है बहुत
घेर रखना महल में उसे
धागा ले के मेरे हाथ का
एक बंधन बनाना सखी,
जोड़ सोने के कंगन इसे ।।
मेरी यादों के रंगों से तुम
एक टिकुली लगाना सखी,
अपने माथे के चंदन पे, हाँ !
मोही मन की मेरी माधुरी,
अपने अंगों पे मलना सखी,
अपना सौरभ भी देना मिला ।।
मरन-जीना मेरा लूटकर
अपने वैभव में लेना समा ।
मुझको लेना उसी में छिपा ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रेम' के अन्तर्गत 36 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)