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मन रे! इतना तो धीरज धर / रामगोपाल 'रुद्र'
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इतना तो उदार हो जाए,
प्रियत की गति पर ध्यान न लाए;
लोक-लोक के वे जीवन हों
तू निर्भर बस उन पर।
दुनिया हँसती है, हँसने दे,
चाहे जो ताने कसने दे;
तू उनकी सुध के मन्दिर में
जल उज्जवल, उज्जवलतर!
घर-घर को दे मधुर उजाला,
जले मौन तेरी यह ज्वाला,
इतना भी क्या रख न सकेगा
हालाहल, गल में भर?