भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मस्ताना पिए जा यूँ ही मस्ताना पिए जा / 'अख्तर' शीरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मस्ताना पिए जा यूँ ही मस्ताना पिए जा ।
पैमाना तो क्या चीज़ है मयखाना पिए जा ।

कर गर्क मयो-जाम गमे-गर्दिशे अयियाम,
अब ए दिले नाकाम तू रिन्दाना पिए जा ।

मयनोशी के आदाब से आगाह नहीं तू,
जिया तरह कहे साक़िए-मयखाना पिए जा ।

इस बस्ती में है वहशते-मस्ती ही से हस्ती,
दीवाना बन औ बादिले दीवाना पिए जा ।

मयखाने के हँगामे हैं कुछ देर के मेहमाँ,
है सुब्ह क़रीब अख़्तरे-दीवाना पिए जा ।