Last modified on 16 नवम्बर 2016, at 04:05

महके फूल / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

महके फूल रातरानी के!

आज पास होती तू मेरे
भर देता अंजलि सुवास से,
मुखरित कर देती सूनापन
तू अलबेले मौन-हास से,

इन आँखों में रस लहराता
मेघ न होते इस पानी के!
महके फूल रातरानी के!

सासों को सुगन्धि से पहले
बेचैनी ने घेर लिया है,
हाथों को सुमनों से पहले
इन पलकों ने काम दिया है,

कितने भोले-भाले पल ये
करुणा के घर मेहमानी के!
महके फूल रातरानी के!

थोड़ी सी आहट मिलते ही
एक होश-सा आ जाता है,
देख न ले यों रोता कोई
भय प्राणों पर छा जाता है,

दुनिया की नज़रों में मेरे
बीत गये दिन नादानी के!
महके फूल रातरानी के!