भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माथा चूमने पर / मरीना स्विताएवा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माथा चूमने पर
मिट जाती हैं सब चिन्ताएँ-
मैं माथा चूमती हूँ ।

आँखें चूमने पर
दूर हो जाता है निद्रा-रोग-
मैं आँखें चूमती हूँ ।

होंठ चूमने पर
बुझ जाती है प्यास-
मैं होंठ चूमती हूँ ।

माथा चूमने पर
मिट जाती हैं आहें-
मैं माथा चूमती हूँ ।


रचनाकाल : 5 जून 1917

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह