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माया के संसार, यहाँ सदा कोय ने रहनहार / भवप्रीतानन्द ओझा

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झूमर (निर्गुण)

माया के संसार, यहाँ सदा कोय ने रहनहार
माया के संसार
ने रहला राम-श्याम, ने अर्जुन, ने बलराम
भीष्म द्रोण कर्णक् ने उबार
गाछ वृक्ष पशु पाखी, जे सब देखल् जाय आँखी
सेहो सभे काल के आहार
एक ब्रह्म अविनाशी, सदा सर्वत्र निवासी
भवप्रीताक् दुर्गा नाम सार।