भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माया के संसार, यहाँ सदा कोय ने रहनहार / भवप्रीतानन्द ओझा
Kavita Kosh से
झूमर (निर्गुण)
माया के संसार, यहाँ सदा कोय ने रहनहार
माया के संसार
ने रहला राम-श्याम, ने अर्जुन, ने बलराम
भीष्म द्रोण कर्णक् ने उबार
गाछ वृक्ष पशु पाखी, जे सब देखल् जाय आँखी
सेहो सभे काल के आहार
एक ब्रह्म अविनाशी, सदा सर्वत्र निवासी
भवप्रीताक् दुर्गा नाम सार।