भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माला / प्रेमशंकर रघुवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसने उसे
माला पहनाई
और गौर से देखा

फूल की पँखुरियाँ
जल्दी-जल्दी

सूख रही थीं साथ-साथ !!