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मिरी तन्हाई क्यों अपनी नहीं है / पवन कुमार


मिरी तन्हाई क्यों अपनी नहीं है
ये गुत्थी आज तक सुलझी नहीं है

बहुत हल्के से तुम दीवार छूना
नमी इसकी अभी उतरी नहीं है

मुआफी बख़्श दी इस तंज’ के साथ
‘‘तुम्हारी भूल ये पहली नहीं है’’

ये दिल है इसको बन्द आँखों से समझो
कोई तहरीर या अर्ज़ी नहीं है

वकारो - इज्ज़तो -शोहरत की मंजि’ल
मुझे पाना है पर जल्दी नहीं है

बहुत चाहा तेरे लहजे में बोलूँ
मगर आवाज’ में नरमी नहीं है

तंज’= व्यंग्य, वक़ार = वैभव