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मिलती लय / प्रेमघन
Kavita Kosh से
"ककरेजवा रँगा दे मोरे बाँके जमादार" की चाल।
प्यारी! लागत तिहारी छबि, प्यारी-प्यारी ना।
गोरे गालन पैं लोटत लट, कारी-कारी ना॥
मुस्कुरानि मन हरै मोहनी, डारी-डारी ना।
मनहुँ प्रेमघन बरसै तोपैं, वारी-वारी ना॥28॥