भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिले हम इस तरह कुछ ज़िन्दगी से / अज़ीज़ आज़ाद
Kavita Kosh से
मिले हम इस तरह कुछ ज़िन्दगी से
के जैसे अजनबी इक अजनबी से
हमें मंज़िल की हसरत ही नहीं है
मिले हैं प्यार से जो हम किसी से
कभी ख़ुद के लिए फ़ुरसत निकालो
बिखर जाएँगे वरना बेरुख़ी से
अँधेरा इस कदर हावी है हम पे
कि अब डरने लगे हैं रोशनी से
मिले वो यार जो दिल की लगा कर
हमें बहला रहे हैं दिल्लगी से
मुझे तुम प्यार से ऐसे न देखो
कहीं मैं रो पड़ूँ न अब ख़ुशी से
‘अज़ीज़’ हम को भी थोड़ा-सा दिलासा
कहीं हम मर न जाएँ बेबसी से