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मिले हम इस तरह कुछ ज़िन्दगी से / अज़ीज़ आज़ाद

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मिले हम इस तरह कुछ ज़िन्दगी से
के जैसे अजनबी इक अजनबी से

हमें मंज़िल की हसरत ही नहीं है
मिले हैं प्यार से जो हम किसी से

कभी ख़ुद के लिए फ़ुरसत निकालो
बिखर जाएँगे वरना बेरुख़ी से

अँधेरा इस कदर हावी है हम पे
कि अब डरने लगे हैं रोशनी से

मिले वो यार जो दिल की लगा कर
हमें बहला रहे हैं दिल्लगी से

मुझे तुम प्यार से ऐसे न देखो
कहीं मैं रो पड़ूँ न अब ख़ुशी से

‘अज़ीज़’ हम को भी थोड़ा-सा दिलासा
कहीं हम मर न जाएँ बेबसी से