मुख सना नवनीत से / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
मुख सना नवनीत से भागे जशोदा लाल झटपट,
तोड़कर मटकी दही की मातु जसुमति को खिजावे।
माँ जशोदा बैठकर लाला सुकरतब देखती है,
और सुत के करतबों पर मंद मन हरषा रही है।
देखकर मुखराशि को पयदंत को तुतलाट को सुन,
ले बलैंय्या बाल की शुचि क्षेम जल बरषा रही है।
तब लुभाकर मातु लाला को डरावे अरु रिसावे,
तोड़कर मटकी दही की मातु जसुमति को खिजावे।
स्नेहचित हो लाल को निज गोद में लेती जसोमति,
और वत्सल भाव से शिशु शीश को सहला रही है।
पर तनिक व्याकुल सशंकित है लला के क्षेम के हित,
इसलिये स्नेहिल दिठौने से हिया बहला रही है।
नाटकी सुत हाथ मिट्टी से भरे माँ को दिखावे,
तोड़कर मटकी दही की मातु जसुमति को खिजावे।
हाथ माँ का झट छुड़ाकर भागते तब बाल नटवर,
घूमते हर द्वार सहचर लूट दधि हुल्लड़ मचावे।
गोपियाँ नटवर डकैती और छींके की चढ़ाई,
मात जसुमति को शिकायत श्याम टोली की बतावे।
अनसुनी कर बात ग्वालिन को जननि जसुमति रिसावे,
तोड़कर मटकी दही की मातु जसुमति को खिजावे।
लाल के इन करतबों से माँ जसोमति डर रही है,
दृष्टि से ओझल न हो अतएव सम्मुख बाँधती है।
यूँ लला का रूठना चंदा खिलौना माँग लेना,
हर्ष का अाधिक्य नैनों से छलकना साधती है।
तब मधुर तुतलाट से बालक हठी माँ को रिझावे,
तोड़कर मटकी दही की मातु जसुमति को खिजावे।
मुख सना नवनीत से भागे जशोदा लाल झटपट,
तोड़कर मटकी दही की मातु जसुमति को खिजावे।