मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - २८
भेंट सच्चिदानन्द ईश को मुक्त प्रभंजन में मधुकर
सत निर्मल आकाश पवन चित नित तेजानन्द सतत निर्झर
विविध वर्णमयि विश्व वस्तुयें प्रियतम का रंगालेखन
टेर रहा है चित्रमालिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।136।।
सच्चा संस्तुत अपरिग्रह ही श्वांसोच्छ्वास समझ मधुकर
तन की तुष्टि सम्हाल रच रहा तू जीवन बंधन निर्झर
मुख्य परिग्रह देह देह का भाव न रख निर्भार विचर
टेर रहा है मुक्तछंदिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।137।।
मेघ वारि बरसते नहीं देखते शैल गह्वर मधुकर
व्यर्थ सलिल बहता रह जाती रिक्ता गिरि माला निर्झर
पूर्वभरित में क्या भर सकता नहीं वहाँ कोई उत्तर
टेर रहा रिक्तान्वेषिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।138।।
जान न कुछ जीवन धन को ही जान पूर्णता में मधुकर
यही तुम्हारा चरम लक्ष्य सब धर्म धारणायें निर्झर
सीखा ज्ञान भुला निहार ले प्रभु रचना आश्चर्यमयी
टेर रहा आश्चर्यमंदिरा मुरली तेरा मुरलीधर।।139।।
विकट पेट की क्षुधा पूर्ति हित विविध स्वांग रच रच मधुकर
मायावी नट सरिस वंचना का विधान रचता निर्झर
हीरा जीवन राख कर दिया बना कीच पंकिल पगले
टेर रहा है ब्रह्मविहरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।140।।