मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ५
सो कर नहीं बिता वासर दिन रात जागता रह मधुकर
जो सोता वह खो देता है मरुथल में जीवन निर्झर
सर्वसमर्पित कर इस क्षण ही साहस कर मिट जा मिट जा
टेर रहा सर्वार्तिभंजिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।21।।
सोच रहा क्या देख देख कितना प्यारा मनहर मधुकर
मात्र टकटकी बाँध देखते उमड़ पड़ेगा रस निर्झर
जीवन के प्रति रागरंग का तुम्हें सुना संगीत ललित
टेर रहा है मंजुमोहिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।22।।
देख रहा जो उसे देखने का संयोग बना मधुकर
दिशा शून्य चेतना खोज ले रासविहारी रस निर्झर
पर से निज पर ही निज दृग की फेर चपल चंचल पुतली
टेर रहा स्वात्मानुसंधिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।23।।
तेरे अधरों का गुंजन वह गीत वही स्वर वह मधुकर
उसे निहार निहाल बना ले पंकिल नयनों का निर्झर
थक थक बैठ गया तू फिर भी भेंज रहा वह संदेशा
टेर रहा है शतावर्तिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।24।।
अपने मन में ही प्रविष्ट नित कर ले उसका मन मधुकर
बस उसके मन का ही रसमय झर झर झरने दे निर्झर
जग प्रपंच को छीन तुम्हारा मन कर देगा बरसाना
टेर रहा है उरनिकुंजिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।25।।