गहन तिमिर में दिशादर्शिका हो ज्यों दीपशिखा मधुकर
मरु अवनी की प्राण पिपासा हर लें ज्यों नीरद निर्झर
तथा मृतक काया में पंकिल भर नव श्वाँसों का स्पंदन
टेर रहा है नित्य नूतना मुरली तेरा मुरलीधर।।16।।
लघु जलकणिका को बाहों के पलने में ले ले मधुकर
हलराता दुलराता रहता ज्यों अविराम सिंधु निर्झर
बिन्दु बिन्दु में प्रतिपल स्पंदित तथा तुम्हारा रत्नाकर
टेर रहा है स्वजनादरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।17।।
चिन्तित सोच विगत वासर क्यों व्यथित सोच भावी मधुकर
प्रवहित निशि वासर अनुप्राणित नित्य नवल जीवन निर्झर
पल पल जीवन रसास्वाद का तुम्हें भेंज कर आमंत्रण
टेर रहा है प्रियागुणाढ्या मुरली तेरा मुरलीधर।।18।।
गत स्मृतियों को जोड जोड क्यों दौड रहा मोहित मधुकर
सुधा नीरनिधि छोड बावरे मरता चाट गरल निर्झर
फंस किस आशा अभिलाषा में व्यर्थ काटता दिन पंकिल
टेर रहा है मधुरमाधवी मुरली तेरा मुरलीधर।।19।।
गूँथ प्राणमाला मतवाला आनेवाला है मधुकर
अति समीप आसीन तुम्हारे ही तो तेरा रस निर्झर
बड़भागिनी तुम्हें कर देगा ललित अंक ले वनमाली
टेर रहा है मनोहारिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।20।।