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मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ३

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मंदस्मित करुणा रसवर्षी वह अद्भुत बादल मधुकर
मृदु करतल सहला सहला सिर हरता प्राण व्यथा निर्झर
मनोहारिणी चितवन से सर्वस्व तुम्हारा हर मनहर
टेर रहा है उरविहारिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।11।।

विविध भाव सुमनों की अपनी सजने दे क्यारी मधुकर
कोना कोना सराबोर कर बहे वहाँ सच्चा निर्झर
वह तेरे सारे सुमनों का रसग्राही आनन्दपथी
टेर रहा सर्वांतरात्मिका मुरली तेरा मुरलीधर।।12।।

मॅंडराते आनन पर तेरे उसके कंज नयन मधुकर
तृषित चकोरी सदृश देख तू उसका मुख मयंक निर्झर
युगल करतलों में रख आनन कर निहाल तुमको अविकल
टेर रहा है मन्मथमथिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।13।।

सब प्रकार मेरे मेरे हो गदगद उर कह कह मधुकर
युग युग से प्यासे प्राणों में देता ढाल सुधा निर्झर
भरिता कर देता रिक्ता को बिना दिये तुमको अवसर
टेर रहा है नादविग्रहा मुरली तेरा मुरलीधर।।14।।

माँग माँग फैला कर अंचल बिलख विधाता से मधुकर
लहरा दे कुरुप जीवन में वह अभिनव सुषमा निर्झर
उसकी लीला वही जानता ढरकाता रस की गगरी
टेर रहा है प्रेमभिक्षुणि मुरली तेरा मुरलीधर।।15।।