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मेरी खाली प्याली में भी / रामगोपाल 'रुद्र'
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मेरी खाली प्याली में भी आज नशा है!
तुमने मेरी ओर आज कुछ ऐसे ताका,
मदिराक्षी! क्या कहूँ कि तुमने कैसे ताका?
बाणविद्ध पंछी जैसे दम तोड़ रहा हो,
एक अधूरी आस आँख में छोड़ रहा हो!
ऐसी कातर और पनीली थी वह चितवन,
ऐसा भेद भरा उसमें था एक निवेदन!
अनजाने, जाने कब तक दृग टँगे रह गए,
धोया कितनी बार, मगर ये रँगे रह गए!
नाच रही है आज आँख में एक कहानी;
उमड़ रही है आँसू बनकर याद पुरानी;
नागिन बनकर किसी आँख ने मुझे डँसा है!