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मेरी रुसवाई का यूँ जश्न मनाया तुमने / सिया सचदेव

मेरी रुसवाई का यूँ जश्न मनाया तुमने
रेत पर नाम लिखा और मिटाया तुमने

फिक्र की धूप में झुलसी हूँ कई सदियों तक
मैंने पाया है तुम्हें मुझको न पाया तुमने

मैंने जब चाहा भुला दूँ तिरी यादों को तभी
प्यार का गीत मुझे आके सुनाया तुमने

इश्क़ ने सुध ही भुला दी थी मेरे तन मन की
टूट ही जाती मगर मुझको बचाया तुमने

वक़्त ने मुझ से उसी वक़्त हँसी छीनी है
जब भी रोती हुई आँखों को हँसाया तुमने

एहतियातों ने मिरे पावं वहीं रोक लिए
जब मिरी सम्त कभी हाथ बढ़ाया तुमने