मेरे स्वप्न / ब्रजेश कृष्ण
मेरी आकांक्षा/इच्छा/सुख-दुख/और डर
के रंग-बिरंगे रीछ हैं वे
वे सोते हैं जागरण के समय मेरे भीतर
रहस्यमयी अबूझ और गहरी कन्दराओं में
और जागकर धरते हैं मायावी रूप
जब मैं नींद की गिरफ़्त में होता हूँ
कुछ लोग/चीजें़/शहर/और स्थितियाँ
अक्सर आती हैं मेरे स्वप्न में:
नाम लेकर पुकारती हुई माँ
एक अदेखा शहर
और बचपन के दोस्त कुंजी से
जब चाहे हो जाती है मुलाक़ात
शहर की दीवार के चारों ओर
रात भर घूमता हुआ मैं
ढूँढ़ता हूँ अक्सर दरवाज़ा
और उठता हूँ पसीने से तर
मेरे कुछ स्वप्न ऐसे
कि जिन्हें मैं भूला नहीं आज तक
इमरजेंसी की एक रात
इंदिरा गांधी मुझे मिलीं
मेरे ही घर में आलू छीलते हुए
उस कठिन समय में
जब हँसना सख़्ती से मना था
मैं खुलकर हँसा कई दिनों बाद
एक रात आईं एक बूढ़ी मेरे पास
उसके चारों ओर था अँधेरा
माँगी उसने लालटेन
जो बरसों से फालतू थी मेरे पास
मगर मैंने नहीं दी उसे
और सुबह छिपता फिरा अपने आप से
कल रात मैं घिर गया था पुलिस से
जेल या रिश्वत मेंसे
मुझे चुनना था एक
जु़र्म था मेरा कि
मेरे पास बरामद हुआ था
एक बासी अख़बार!
सुबह उठा तो अचरज से भरा था
कि इस बेतुके समय के बावजूद
मैंने रिश्वत को नहीं
जेल को चुना था
भीतर के रीछों को देखने के लिए
ज़रूरी हैं मेरे लिए मेरे ही स्वप्न।