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मैं यक़ीन-ए-गुमाँ से निकला हूँ / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

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मैं यक़ीन- ए- गुमाँ से निकला हूँ
अपने ही दरमियाँ से निकला हूँ

मेरा किरदार बोलता था बहुत
इसलिए दास्ताँ से निकला हूँ

वहशतें मुझ में रक़्स करती हैं
किसके गिर्दाब- ए- जाँ से निकला हूँ

किसके दुख- दर्द का हूँ मैं हासिल
किसके आह- ओ- फ़ुग़ाँ से निकला हूँ

लगता रहता हूँ मैं निशानों पर
जाने किस की कमाँ से निकला हूँ

मुझको तहरीर कर रहे हैं लोग
लफ़्ज़ हूँ मैं ज़बाँ से निकला हूँ