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मैं हैरान हूँ! / मुकेश निर्विकार
Kavita Kosh से
न जाने कैसे बहाता होगा
अपने अंतर से
जड़ों से पत्तियों तक
पोषण की संवेदांधरा
काठनुमा पेड़ का
कुचालक तना?
बदरंग तने और शाख के सिरों से
न जाने कैसे खिल उठती हैं
अमलतास की पीताभ
और गुलमौहर की रक्ताभ?
आखिर, यह बेरंग मिट्टी भी
न जाने कैसे उगा देती है
अपने अंदर से
पादपों की हरीतिमा और
पुष्पों के चटख रंग?
मैं कुदरत की अजब जादूगरी पर
बेहद हैरान हूँ!
और हैरान हूँ तुम पर भी की आखिर,
इन सबको देखकर तुम्हें तनिक भी
हैरानी क्यों नहीं होती
हे मित्र?